SAINTS

श्री निम्बार्क सम्प्रदाय में श्रीवृन्दावन निकुञ्ज विहारी प्रिया-प्रियतम युगलकिशोर की नित्य लीलाविहार रसोपासना (भक्ति) की ही प्रधानता है । आद्याचार्य श्रीनिम्बार्क भगवान अपनी दशश्लोकी में ‘उपासनीयं नितरां जनै: सदा’ इस छठे श्लोक में इस उपासना को परम श्रेयस्कर बतलाते हुए कहते हैं समस्त तत्व के साक्षी देवर्षि श्रीनारदजी को सनन्दनादि महर्षियों ने जिस प्रकार उपदेश किया उसी प्रकार सभी जनों को अज्ञानान्धकार के कारण जन्म-मृत्यु रूप संसार चक्र से मुक्त होने के लिए निरन्तर युगलस्वरूप भगवान श्रीसर्वेश्वर श्रीराधाकृष्ण की उपासना करनी चाहिए। क्योंकि इस जीव की श्रीसर्वेश्वरकृष्ण के चरणारविन्द के अतिरिक्त कोई अन्य गति हैं ही नहीं। श्रीसर्वेश्वर की भक्ति ही जीव की एकमात्र गति हैं। ‘भज सेवायाम’ इस धातु से ‘क्तिन ‘ प्रत्यय करने पर भक्ति शब्द सिद्ध होता है । जिसका अर्थ है, सेवा अनुराग, प्रेम, श्रद्धा एवं उपासना आदि । भक्ति द्वारा भगवत्प्राप्ति में श्रीगुरुदेव द्वारा भगवत शरणागति मुख्य है । शरणागत होते ही भक्ति और भगवत्स्वरूप तथा विषयों से वैराग्य इन तीनों का परिज्ञान एक साथ हो जाता है। परन्तु यह विषय कृपा साध्य हैं साधन साध्य नहीं । यहाँ साधन की अपेक्षा भगवत्कृपा की ही प्रधानता है। वह भगवतकृपा किन भक्तों पर होती है, इस सम्बन्ध में आद्याचार्य भगवान ने दशश्लोकी ही निर्दिष्ट किया है —
कृपास्य दैन्यादियुजि प्रजायते यया भवेत् प्रमविशेषलक्षणा।
भक्तिह्र्यनन्याधिपतेर्महात्मनः, सा चोत्तमा साधनरूपिकाऽपरा।।

सर्वतन्त्र स्वतन्त्र परमात्मा भगवान् श्रीसर्वेश्वर का अनुग्रह उसी भक्त पर होता है कि जिसमें दीनता, नम्रता, सरसता अादि भाव हो । भगवान् के अनुग्रह से ही उस भक्त के चित में भगवान् विषयक परम अनुराग प्रकट होता है । उस प्रेमानुराग को ही परा एवं साध्य भक्ति कहते हैं । इसी का नाम प्रेम-लक्षण (फल रूपा) भक्ति है । वह प्रेमलक्षण भक्ति ही सब भक्तियों में श्रेष्ठ है और उससे भिन्न साधन रूपा प्रारम्भिक भक्ति को अर्थात जो सत्संग तथा श्रद्धा से उत्पन्न होती हैं उसे अपरा भक्ति कहते हैं । पूर्वाचार्यवर श्रीकेशवकाशमीरिभट्टाचार्य महाराज ने भी भक्ति का यही क्रम प्रकट किया हैं –

आदौ दैन्यं हि संतोषः परिचर्या ततः परम्
ततः कृपा च सत्सङ्गोऽथ सद्धर्मरुचिस्ततः ।
कृष्णे रतिस्ततो भक्तिर्या प्रोक्ता प्रेमलक्षणा
प्रादुर्भावे भवेदस्या: साधकानामयं क्रमः ।।

सर्वप्रथम साधक दैन्य और संतोषादि गुणों से युक्त हो फिर वह परिचर्या करे । तदन्तर उसको भगवान् की परोक्ष कृपा प्राप्त होती है जिससे सत्संग मिलता है। सत्संग से सद्धर्म में रुचि उत्पन्न होती है । इसके उपरान्त श्रीकृष्ण में रति होती है तब भक्ति प्रकट होती है । भक्ति के उदय होने पर प्रेमलक्षणा भक्ति होती है। इस फल रूपा भक्ति की महिमा व्यक्त करते हुए श्रीसनकादि मुनिगण कहते हैं –

“प्रभो, आपका सुयश अत्यन्त कीर्तनीय और सांसारिक दुःखों की निवृति करने वाला है । आपके चरणों की शरण में रहने वाले जो महाभाग आपकी कथाओं के रसिक हैं वे आपके आत्यन्तिक प्रसाद मोक्ष पद भी कुछ नहीं गिनते,फिर जिन्हें आपकी जरा सी टेढी भौंह ही भयभीत कर देती है उन इन्द्रपद आदि अन्य भोगों के विषय में तो कहना ही क्या ।”

आद्याचार्य भगवान ने दशश्लोकी में ‘सखीसहस्रैः परिसेवितां सदा’ द्वारा श्रीराधाकृष्ण की प्रेमलक्षणा उपासना का उपदेश दिया हैं । इसी प्रेमलक्षणा भक्ति के अंतर्गत मधुरोपासना का भाव हैं । श्रीनिम्बार्क भगवान् की परम्परा के सभी आचार्यों ने अपने ग्रंथों में इसका संकेत किया हैं ।
आचार्यवर श्रीश्रीभटटदेवाचार्य जी एवं श्रीहरिव्यासदेवाचार्य जी के ‘युगलशतक’ तथा ‘महावाणी’ में इसका विशद वर्णन हैं । सम्प्रदाय के अनेकतः संतों की वाणी ग्रंथों में इस प्रेमा भक्ति का निरूपण मधुरोपासना के रूप में हुआ हैं जिनमे रसिक सम्राट स्वामी श्रीहरिदास जी महाराज प्रमुख हैं ।
स्वामी श्रीहरिदास जी के ह्रदयकुञ्ज में विराजित श्रीश्यामा-श्याम के साक्षात स्वरुप श्रीबिहारीजी का प्राकट्य हुआ ।

ऐसे मङ्गल स्वरूप पराभक्ति प्रदायक रसिक-कुल-कमल दिवाकर, अनन्य नृपति श्रीस्वामी हरिदासजी महाराज के परम् पावन मङ्गल प्राकट्य उत्सव की अनंतानंत मङ्गल बधाई !!

आज निम्बार्क कोट के संस्थापक श्री बाबा बाल गोविंद दास जी की जयंती है। इसी के साथ निम्बार्क आचार्य वृन्द जयंती शुरू हो गया है। पहले दिन महाराज जी की जयंती मनाई जाती है। और समाज गायन में गाया जाता है-सांचे श्री राधारमण, झूठो सब संसार।

आज महाराज जी की 126वीं जयंती है। महाराज जी सबसे पहले सन 1920 में 28 वर्ष की आयु में वृन्दावन पधारे थे। इनके वृन्दावन वास के दृढ़ संकल्प के चलते मेरे परम पितामह (बाबूजी के दादाजी) और ‘अनुभव प्रकाश’ पुस्तक के रचयिता स्वामी श्री भागवत नारायण दास जी ने बनखंडी महादेव के पास छीपी गली में निम्बार्क कोट मंदिर (1924) का निर्माण कराया और विक्रम संवत 1981 यानी सन 1928 में ठाकुर राधारमण लालजी की प्राण प्रतिष्ठा की, साथ ही निम्बार्क आचार्य पंचायतन की प्रतिष्ठापना की। ब्रज के परम वीतराग संत बाबा श्री हंसदास जी महाराज ने महाराज जी को पट्ट शिष्यत्व प्रदान किया और महाराज जी निम्बार्काचार्य गुरु परंपरा के स्वयंभूराम देवाचार्य द्वारे के 52वें आचार्य हुए।

सरस श्रद्धांजलि — सरस श्री धाम वृन्दावन में श्रीयुगल नाम की सरसता का रसास्वादन केवल रसिक संत ही करा सकते है | मुझ जैसे अधमाति अधम जीव को मधुरातिमधुर नाम का चस्का लगाने को संत किस युक्ति से कार्य करते है ये चिंतन बुद्धिजीवियों की क्षमता से परे है | कुछ इसी विलक्षण परोपकारी प्रतिभा से सम्पन्न श्रीकीर्तनिया बाबा जी थे | आप का जन्म असम में हुआ और आप श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित होकर विरक्ति के सभी लक्षणों से सुशोभित होकर श्रीधाम वृन्दावन में विराजते थे | आप सरलता और त्याग की मूर्ती थे | सरलता तो सभी प्रकार से सरलता लेकिन सरलता का अर्थ किसी प्रकार से हीनता नहीं जैसा की आजकल माना जाता है | आप सरल थे सरलता से कीर्तन कराते थे लेकिन उस सरल कीर्तन में भी सरसता थी सरसता की हिलोर ह्रदय द्रवित कर देती थी | बलिहार श्रीकीर्तनिया बाबा जी की श्रीचरण रज पर | जब कभी अचानक मिलना होता था तो मुझे तो बहुत सावधान रहना पड़ता था ऐसे मिलते थे जैसे मुझसे काफी छोटे हों | मुझ जैसे अधम जीवो से भी सहज नाम उच्चारण कराने का एक अद्भुत विधान खोज निकाला | आपने देखा होगा कि श्रीधाम वृन्दावन की दीवारों एवं वृक्षों पर श्रीराधा श्रीराधा लिखा रहता था ये दिव्य युक्ति जीव कल्याणार्थ और एतदर्थ परिश्रम सर्व विध श्लाघनीय और वन्दनीय है | आप श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय के सदाचार के साक्षात स्वरूप थे हम सभी को उनके दर्शन मात्र से सदाचार की प्रेरणा मिलती रहती थी | श्रीधाम में रसिक जन के प्रिय श्रीकीर्तनिया बाबा जी निकुंज प्रवेश | हमें कल्याण कारी सरस स्मृतियों के साथ सगौरव बिलखते छोड़ कर | कोटि कोटि नमन

महंत नहीं संत का शिष्य बनना है —-

इन महापुरुषों को भी जानिये —–आप श्रीरासेश्वरीदास जी महाराज है | आप श्रीधाम वृन्दावन में निम्बार्की संत श्रीनरहरिदास जी के शिष्य है प्रख्यात रामकथा वाचक श्रीविजय कौशल जी महाराज आप के गुरु भाई है | आपकी निजी कथा को हमने अपनी शिक्षा और संस्कार बढाने हेतु बड़ी मुश्किल से निकलवाया | आप बिजनौर के मूल निवासी आज से 60 वर्ष पूर्व हाई स्कूल पास किया | महापुरुषों की जीवनी पढ़ने से वैराग्य हो गया आप घर से भाग निकले | हरिद्वार आदि धार्मिक स्थानों में भ्रमण करते हुए श्रीवृंदावन पहुंचे | अनेक संतो महंतो के दर्शन करते हुए योग्य गुरु की खोज में थे | बुद्धि की प्रखरता से मन में विचार था कि किसी महंत ( वैभव शाली संत ) का शिष्य नहीं बनना है किसी संत का ही शिष्य बनना है | प्रभु ने कृपा की कि एक बरामदे में एक संत अकेले लेटे हुए थे आप उनके चरणों में पड गए और उनके शिष्य बन गए फिर अध्ययन और साधना की | कभी घर वापिस नहीं गए |
एक अच्छे भागवताचार्य के रूप में गौरव पूर्ण स्थान बनाया आपने | बगैर नौटंकी किये अच्छी रसमय भागवत कथा निश्चित ही हमको भी रससिक्त करती है | आपने आज 75 वर्ष की आयु में भी कोई आश्रम नहीं बनाया | आपकी योग्यता , विद्वत्ता , साधना , ब्रह्मचर्यादि नियम हम निम्बार्कियो का गौरव है | वही आज के मूर्ख शिष्य अपने जैसे सेक्स रेकेटियों फर्जी जगद्गुरुओ श्याम शरण उर्फ़ श्रीकांत को गुरु बना कर पूज कर सीधे गोलोक जायेंगे ? वाह कलियुग वाह | हम परम पूज्य श्रीरासेश्वरी दास जी महाराज जैसे संतो को नमन करते हुए गौरव का अनुभव करते है | श्याम शरण उर्फ़ श्रीकांत जैसे सेक्स रेकेटियो और उसके भोगवादी चेलो के कलंक से दुखी संतो भक्तो को आपके दर्शन और स्मरण से शान्ति प्राप्त होती है