श्रीचारभुजा नाथजी मीराबाई जी के कुलसेव्य श्रीविग्रह हैं।
मीरा बाई के दादा श्री दूदा जी के राज्यकाल में एक मोची की गऊ द्वारा निर्देशन मिलने पर खुदाई कराने पे भूमि से ये श्रीविग्रह प्राप्त हुऐ।
दूदा जी ने श्रीविग्रह की प्रतिष्ठा करवाई जिस उत्सव में उन्होंने अपने गुरुदेव निम्बार्काचार्य श्रीपरशुरामदेवाचार्य जी को श्रीनिम्बार्कतीर्थ सलेमाबाद से पधरावनी करवाई थी। उसी प्रसंग में मीरा बाई की दीक्षा और निजी सेवा के लिए श्रीपरशुरामदेवजी से श्रीगिरधरगोपाल की प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जो अब परशुरामद्वारा पुष्कर में विराजित हैं।
श्रीरामधन मोची की गाय द्वारा किये संकेत से श्रीविग्रह के प्राकट्य होने के कारण पहला भोग श्रीरामधन मोची के वंशजों के घर से ही आता हैं।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी जैसे गुरु के शिष्य और व्रजवास करके कठोर नियम पालन करके भजन करने वाले जीव गोस्वामी जी को भाव उपदेश करने वाली श्रीमीराजी ( कृष्णावतार के समय की वृज गोपी ) 36 वें जगद्गुरु निम्बार्काचार्य श्रीपरशुराम देवाचार्य जी की शिष्या —शिलालेख देखिये श्रीमीराजी के जन्म स्थान मेड़ता सिटी के संग्रहालय के
श्री मीरा जी के गुरुदेव , दादा ,पिता , भाई एवं जीवन की संक्षिप्त जानकारी शिलालेखो द्वारा मेड़ता सिटी से प्राप्त — श्रीमीरा जी के गुरुदेव 36 वें जगद्गुरु निम्बार्काचार्य श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी महाराज ( प्रथम चित्र ) उनके इष्ट श्रीगिरधर गोपाल जी वर्त्तमान में विराजमान श्रीपरशुराम द्वारा पुष्कर ( श्रीमीराजी के गुरुदेव का जीवित समाधि स्थल –चित्र संलग्न ) राव दूदा जी श्रीमीराजी के बाबा आदि