हमारा लक्ष्य
धर्माडंबर से कंचन कीर्ति की चकाचौंध में विलुप्त होते ग्रन्थ, शास्त्र विरुद्ध उपासना, सदाचार हीनता, स्वेच्छाचारिता (मनमुखीपन ), भ्रान्त मत और ज्ञान के नाम पर अज्ञान के निरन्तर पतनशील असांस्कृतिक वातावरण में अति तपस्वी, अपरिग्रही संत ने निम्बार्क ज्ञान कोष के माध्यम से दुर्लभ ग्रंथो को स्कैन करके विश्व जाल यानी इंटर नैट पर उपलब्ध कराया तो अन्य संवेदन शील साधक युवा भी इसमें संलग्न हुए| संत जी ने अपना नाम गोपनीय रखने की कठोर शर्त रख दी अतः नामोल्लेख नहीं कर सकते| आइये हम सभी जगद्गुरु भगवान श्रीनिम्बार्काचार्य जी की वेदान्त दशश्लोकी के अनुसार ज्ञान स्वरूपता को विकसित करे जिससे हमारा कल्याण हो और भारतीय संस्कृति का भी मस्तक गर्वोन्नत हो| साथ ही साथ आज भारत और विश्व में उच्च शिक्षा और समृद्धि के बाद भी सामाजिक समस्याए दिनों दिन अनियंत्रित हो रही हैं कानून और मेडीकल साइंस भी इन समस्याओ के नियंत्रण में असमर्थ हो रहे हैं ऐसी परिस्थिति में कलियुग के कलि यानी अधर्म यानि अपराधिक विचार और कर्मो के नियंत्रक प्रथम आचार्य सुदर्शन चक्रराज के अवतार श्रीनिम्बार्काचार्य जी के ज्ञान-विज्ञान से विश्व शन्ति और सौहार्द्र स्थापित हो| एतदर्थ यदि आपके पास भी अच्छे विचार और आचरण योग्य संत या सद्गृहस्थ विवरण हो तो समाज हित में हमको लिख भेजें|